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Kitab Launches Shashi Tharoor’s Book “The Battle of Belonging” Literary Bigwigs – politicians Attend Online Event Hosted By Prabha Khaitan Foundation

Kitab Launches Shashi Tharoor’s Book  “The Battle of Belonging”  Literary Bigwigs – politicians Attend Online Event Hosted By Prabha Khaitan Foundation

प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा शशि थरूर की नयी पुस्तक “द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग” को किया गया लॉन्च

23 नवंबर 2020, कोलकाता: शशि थरूर की नयी पुस्तक “द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग” को ‘‘प्रभा खेतान फाउंडेशन’’ की तरफ से ऑनलाइन सत्र ‘किताब’ के समारोह में लॉन्च किया। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री हामिद अंसारी (देश के पूर्व उपराष्ट्रपति), फारूक अब्दुल्ला (अध्यक्ष, जेएंडके नेशनल कॉन्फ्रेंस), डेविड डेविडर (उपन्यासकार और प्रकाशक), पवन के वर्मा (पूर्व राज्यसभा सांसद और राजनयिक), मकरंद परांजपे (निर्देशक), लेखक शशि थरूर ने इस समारोह में “द बैटल ऑफ बिलॉन्गिंग” लिखने के लिए अपनी प्रेरणा को विस्तृत रूप से समारोह में शामिल सम्मानीय अतिथियों के समक्ष साझा किया। इसके साथ ही उन्होंने इस गहन शोध कार्य को पढ़ने के लिए किताब से जुड़ी कई अहम जानकारी दी।

एलेफ बुक कंपनी के संयुक्त तत्वाधान में प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस ऑनलाइन कार्यक्रम में एहसास की तरफ से महिला सुश्री अप्रा कुच्छल ने इसे लांन्च किया और पत्रकार करण थापर द्वारा पूरे कार्यक्रम को संचालित किया गया। इस वेब इवेंट में भारत के वर्तमान सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर प्रकाश डालती शशि थरूर की 22 वीं पुस्तक के बारे में चर्चा और आलोचनात्मक मूल्यांकन के लिए देश -विदेश से बड़ी संख्या में अतिथि शामिल हुए।

सभी मेहमानों ने शशि थरूर की नवीनतम पुस्तक और भारत से संबंधित कई मुद्दों पर गंभीर बहस को गति देने को लेकर इस पुस्तक की काफी सराहना की, क्यों कि इस पुस्तक के जरिये वे कुछ मूल अवधारणाओं जैसे राष्ट्रवाद, देशभक्ति, नागरिक राष्ट्रवाद, भारत के विचार और अन्य लोगों के बारे में विस्तार से बताने से वे नहीं कतराए।

श्री हामिद अंसारी ने जीवंत चर्चाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा: इसमें एकग्र भारत के विचार के लिए एक भावुक दलील को शामिल किया गया है, इसमें पहले की उन विचारधाराओं जो अब लुप्तप्राय है इसके जरिये कल्पनाशील मानदंडों पर प्रकाश डालने की कोशिश की गयी हैं। शशि थरूर ने इस पुस्तक में स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय गणतंत्र के बाद के सात दशकों में समझे गए भारतीयता के आवश्यक तत्वों पर पाठकों का ध्यान आकर्षित कराने की कोशिश की है। मुझे इसमें देशभक्ति पर निबंध विशेष रूप से ज्ञानवर्धक लगे। पुस्तक का विश्लेषण व्यापक है।

किताब के प्रकाशक एलेफ बुक कंपनी के डेविड डेविडर ने कहा: मुझे उम्मीद है कि हर भारतीय इस किताब को अवश्य पढ़ेगा। इसमें एक उल्लेखनीय रूप से सीखा भी दी गयी है, यहां तक ​​कि इसमें मूलभूत विचारों और अवधारणाओं के साथ राष्ट्रीय मूल्यों के अध्ययन को शामिल किया गया है। यह पुस्तक दुर्लभतम-दुर्लभ ‘अपरिहार्य’ श्रेणी में आती है – ऐसी पुस्तकें जिनके बिना आप काम नहीं कर सकते। मुझे उम्मीद है कि लोग इस पुस्तक को पढ़ने के बाद अब से “पचास साल की लड़ाई” पर चर्चा अवश्य करेंगे।

शशि थरूर ने इस पुस्तक को कलमबद्ध करने से जुड़े कारणों के बारे में बताते हुए कहा:  इस पुस्तक में राष्ट्रवाद और देशभक्ति के मुद्दों पर जीवनभर के विचारों, पठन और तर्कों की पराकाष्ठा को शामिल किया गया है जो केवल सैद्धांतिक या अकादमिक नहीं हैं, बल्कि गहन रूप से व्यक्तिगत भी हैं। पुस्तक को भारतीय राष्ट्रवाद के मूल तत्व के लिए एक बुनियादी चुनौती के उदय से प्रेरित किया गया था। यह पुस्तक आज के भारत में विशिष्टता के खिलाफ दुनिया में राष्ट्रीयता की समझ की ओर एक पर्यवेक्षक का नोट प्रस्तुत करती है। भारत के अपने उपनिवेशवाद-विरोधी राष्ट्रवाद ने एक लोकतांत्रिक संविधान में खुद को `नागरिक राष्ट्रवाद ‘ में बदल दिया और फिर इसे अब धार्मिक-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद में बदलने के लिए संघर्ष किया जा रहा है। इस पुस्तक में प्रमुख विषय भारत से संबंधित होने और भारत का आपके साथ होने की लड़ाई को बनाया गया है।

 

लेखक अपनी लेखनी के जरिये यह बताने की कोशिश किये हैं कि आज भारत में जिस राष्ट्रवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है, वह एक ऐसी समग्र दृष्टि है। नागरिक राष्ट्रवाद एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक समाज में भाग लेने के लिए नागरिकों की सहमति से उत्पन्न होता है और लोगों के व्यक्तिगत अधिकारों को सुरक्षित रखता है और इसलिए इसे सभी के ऊपर प्रचारित और इसे संरक्षित किया जाना चाहिए।

थरूर अपनी किताब में कहते हैं कि देशभक्ति और राष्ट्रवाद अलग हैं। एक देशभक्त अपने देश के लिए मरने को तैयार है जबकि एक राष्ट्रवादी अपने देश के लिए मारने को तैयार है। किताब वेब कार्यक्रम में शामिल कुछ लाइव पैनलिस्ट इस अंतर से सहमत नहीं थे, वे इसे “बौद्धिक उत्थान” कहते रहे हैं।

करण थापर के एक सवाल के जवाब में, फारूक अब्दुल्ला ने कहा: आज हम धर्म, जाति, पंथ और भाषा पर विभाजित हो रहे हैं। क्या हम एक मजबूत भारत बना रहे हैं या इसके बहुत सार को मार रहे हैं! शशि ने इस किताब को लिखने में बहुत अच्छा काम किया है। मैं आपको एक बात बताना चाहता हूं, अत्याचारी आ सकते हैं और जा सकते हैं लेकिन राष्ट्र जीवित रहते हैं। हमें ऐसी ताकतों से लड़ना होगा जो हमें धर्म, जाति पंथ और भाषा के आधार पर विभाजित करने का प्रयास करते हैं।

कवि और उपन्यासकार परांजपे मारकंड ने कई विषयों पर लेखक से असहमति जताते हुए कहा: आज बहुत ही गर्मजोशी से नये भारत के लिए लड़ा जा रहा है। वहीं काफी पहले से चली आ रही नेहरूवादी आम सहमति जिसके साथ हम में से कई बड़े हुए हैं, अब शायद धूल से भर गए हैं, यह शशि की अन्य किताबों में अलग है और इस पर गंभीर बहस होनी चाहिए, लेकिन मुझे नहीं लगता कि भारत एक ऐसा देश है जो `नागरिक राष्ट्रवाद ‘का पालन करता है। मुझे लगता है कि यह हमारा सभ्यतावादी राष्ट्रवाद ’है और यह हमेशा बहुवचन है। शशि ने भारतीय संविधान को लगभग एक पवित्र ग्रंथ की तरह माना है, जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता, लेकिन इसे 103 बार बदला गया है। 42 वां संशोधन, आपातकाल के दौरान धकेल दिया गया, भारत का संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य अचानक एक समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष बन गया। जो आम संपत्ति में विश्वास करता है। हम समाजवादी नहीं हैं। हम अभी एक झूठ, एक पाखंड को जी रहे हैं। आइए हम खुद को किन्नर न बनाएं क्योंकि हमारी सारी राजनीति जातिगत गणना, भाषाई गणना, धर्म और जाति पर आधारित है।

पवन के वर्मा ने इसे एक महत्वपूर्ण पुस्तक पर कहा: शशि ने अपनी मस्तिष्क ऊर्जा को को इस किताब में निवेश किया और इसके जरिये एक दृष्टिकोण पेश किया, जो बहुत प्रासंगिक है। हमारा मानना है कि सभी धार्मिक चरम बुरे हैं, जिनमें इस्लामिक कट्टरवाद भी शामिल है, मैं वास्तव में यह नहीं समझ सकता कि एक देश के लिए एक ‘नागरिक राष्ट्रवाद’ क्या है जो समय की सुबह तक वापस चला जाता है और जिसकी सभ्यता की विरासत कुछ ऐसी है जिसे हमें अनदेखा करना और भारत के किसी भी विचार के लिए योगदान करना बहुत मुश्किल है जिसे हमने हाल ही में बनाया है। हमे किसी भी गैर-सांस्कृतिक बदलाव के खिलाफ विरोध के लिए हमेशा प्रस्तुत रहना चाहिए । श्री पवन के वर्मा ने भारत में धर्मनिरपेक्षता की विकृतियों और बैकलैश पर प्रकाश डाला। हेसैड ने कहा, आज कई भारतीय हैं जो भारत के विचार का निर्माण करने और उन्हें फिर से जांचने की बात सोच रहे हैं – महात्मा गांधी ने खिलाफत आंदोलन का समर्थन क्यों किया? नेहरू ने डॉ. राजेंद्र प्रसाद को पुनर्निर्मित सोमनाथ मंदिर के उद्घाटन में भाग लेने के लिए क्यों नहीं लिखा? केवल हिंदुओं के व्यक्तिगत कानूनों को क्यों बदला गया? अध्यादेश द्वारा शाह बानो केस का फैसला क्यों सुनाया गया। ये ऐसे प्रश्न हैं जिनसे हम परिचित हैं। हम आज के समय में वैमनस्य पैदा करने के लिए अतीत को खंगाल नहीं कर रहे हैं। लंबे समय तक ये सवाल कभी नहीं उठाये गये और इसलिए भारत का विचार निर्विरोध रहा। उन्हें अभी उठाया जा रहा है और हमें उनका जवाब देने की जरूरत है। हमारा मानना है कि हमे यह भी सोचना चाहिये कि महात्मा गांधी के इरादे हमेशा अच्छे थे लेकिन हमें यह देखने की जरूरत है कि इसके परिणाम क्या थे।

‘किताब’ कोलकाता के प्रभा खेतान फाउंडेशन का एक ऑनलाइन सत्र कार्यक्रम है, जिसे कोलकाता के सुप्रसिद्ध समाजसेवी संदीप भूतोरिया द्वारा परिकल्पित किया गया है, जो लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों और विचारकों को अपनी पुस्तकों को लॉन्च करने और विभिन्न विषयों पर अपने विचारों को साझा करने और इसपर बौद्धिक सुझाव को प्रोत्साहित करने के लिए एक चर्चा मंच प्रदान करता है।

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